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वही अजमेर आते हैं जिन्हें ख़्वाजा बुलाते हैं..!

यादों की जुगाली

#यादों की  जुगाली
▪️वही अजमेर आते हैं जिन्हें ख़्वाजा बुलाते हैं..!

० डॉ. राकेश पाठक

अजमेर की ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगार का मुद्दा इन दिनों खूब गर्माया हुआ है। सदियों से ख़्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की इस दरगाह पर देश,दुनिया लाखों लोग मत्था टेकने आते हैं।
ग़रीब नवाज़ के आशिकों में हर मज़हब, हर फिरके के लोग शामिल हैं। आप जब दरगाह पर खिराजे अकीदत पेश करने जाएंगे तो दुआ मांगते लोगों में आपको मुसलमानों से ज्यादा हिंदू दिखाई देंगे।

इस दरगाह के साथ हमारी भी एक अनूठी याद जुड़ी है।

🔹 किस्सा उस दौर का है जब हम नवभारत,ग्वालियर में संपादक थे।

सन 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के बीच आगरा में शिकार वार्ता हुई थी।

इसे कवर करने हम और हमारे भोपाल संस्करण के सम्पादक श्याम वेताल जी आगरा गए थे।

निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक 14,15 जुलाई को अटल मुशर्रफ़ वार्ता के बाद 16 जुलाई 2001 को जनरल मुशर्रफ़ को अजेमर में ख़्वाजा चिश्ती की दरगाह पर चादरपोशी के लिए जाना था।

हमने इस शिखर वार्ता को लेकर लगातार कई दिन लिखा था। सबसे पहली किश्त का शीर्षक आज भी याद है..
“सुलहकुल की धरती पर सुलह की बात”

▪️आगरा में मुग़ल शेरेटन में मीडिया सेंटर था। जनरल मुशर्रफ़ अपनी अहलिया (धर्म पत्नी) के साथ जेपी पैलेस में रुके थे। दो दिन वार्ता चलती रही। विदेश मंत्री जसवंत सिंह और विशेष सचिव पत्रकारों को जानकारी देते रहे।

वार्ता के दूसरे दिन 15 जुलाई की रात हमारे भोपाल मुख्यालय से प्रधान संपादक जी का निर्देश आया कि हमें जनरल मुशर्रफ़ के दरगाह दौरे को कवर करना है। तत्काल अजमेर निकालिए। श्याम वेताल जी आगरा रुकेंगे और आख़िरी दिन कवर करेंगे।

हमने फ़ौरन अपना बोरिया बिस्तर समेटा और टैक्सी पकड़ कर अजमेर निकल लिए। रात भर के सफ़र के बाद अजेमर पहुंचे, होटल पहुंच कर थोड़ा सा सुस्ताए और तैयार होकर दरगाह की तरफ़ चल पड़े।

सोचा था कि जनरल मुशर्रफ़ के आने से पहले ख़्वाजा के दीदार कर आयेंगे। लेकिन दरगाह से गली के मुहाने पर ही पुलिस ने रोक दिया। जनरल मुशर्रफ़ की आमद से पहले किसी को वहां जाने की इजाजत नहीं थी।

हम लौट कर होटल आ गए। सोचा एडवांस में ख़बर लिख ली जाए फिर थोड़ा पीठ सीधी करेंगे।
कागज़ क़लम उठाया और कल्पना के घोड़े दौड़ा कर मुशर्रफ़ के अजमेर दौरे की पूरी ख़बर लिख मारी।
शीर्षक बना दिया….
“जनरल मुशर्रफ़ ने चादर चढ़ाई और अमन के लिए दुआ मांगी..!”

होटल के रिस्पेशन से ख़बर फैक्स करना थी लेकिन लगा कि जनरल मुशर्रफ़ के अजमेर से रवाना होने के बाद ही करना ठीक रहेगा। भूख लग आई थी सो रूम में ही दाल रोटी मंगा ली। खाना शुरू करते ही टीवी खोल लिया था।

अभी दो कौर भी मुंह में नहीं गए थे कि न्यूज़ चैनल पर बिग ब्रेकिंग का धमाका हुआ…

“आगरा शिखर वार्ता फेल, जनरल मुशर्रफ़ सीधे इस्लामाबाद रवाना…।
अजमेर दौरा रद्द…!” 😳

हमने जब तक एक रोटी ख़त्म की तब तक जनरल साहब हिन्दुस्तान के आसमान से बाहर हो चुके थे।

हम बाल बाल बच गए कि एडवांस में लिखी ख़बर भोपाल मुख्यालय नहीं भेजी थी वरना क्या ही खिल्ली उड़ती हमारी..!🫣

हमने खाना खाते खाते उस ख़बर को फाड़ कर फेंका और झटपट तैयार होकर दरगाह की तरफ़ रवाना हो गए। हमारे पहुंचने से पहले वहां से तमाम सुरक्षा इतज़ाम लगभग हट चुका था, पुलिस की गाड़ियां बैरिकेटिंग के लिए लगी बांस बल्लियां लाद कर विदा हो रहीं थीं।

हमने चादर और फूलों की टोकरी खरीदी और दरगाह में दाखिल हुए। अब वहां देश, दुनिया के तमाम पत्रकारों, कैमरा वालों का हुजूम दिख रहा था। सब चादरपोशी में लगे थे लेकिन जनरल मुशर्रफ़ का दौरा रद्द होने से थोड़ा मायूस भी थे।

हमने भी चादरपोशी की, ख़िराजे अकीदत पेश किया। थोड़ी देर बैठ कर ग़रीब नवाज़ के आस्ताने को निहारते रहे। पीछे आंगन में कुछ लोग बहुत अच्छे सुर में कव्वाली पेश कर रहे थे। कुछ देर बैठ कर उन्हें सुना।

चलते चलते एक खिदमदार से बात होने लगी।
उन्होंने कहा कि…
देखिए जनाब आप सब ख़बरनवीसों को ख़्वाजा ने बुलाया था लेकिन जनरल मुशर्रफ़ को नहीं।

यहां वही आता है जिसे ख़्वाजा बुलाते हैं।
फिर ख़िदमतगार ने एक शे’र पढ़ा..

इरादे रोज बनते हैं और टूट जाते हैं
वह अजमेर आते हैं जिन्हें ख़्वाजा बुलाते हैं।

बस हमें आज की रिपोर्ट के लिए हैडलाइन मिल गई थी..हम भागते हुए होटल पहुंचे।

जनरल मुशर्रफ़ का दौरा रद्द होने की पूरी ख़बर लिखी
और यही शीर्षक दिया…

“वही अजमेर आते हैं जिन्हें ख़्वाजा बुलाते हैं..”
हमने लिखा कि ख़्वाजा ने मुशर्रफ़ को नहीं बुलाया था लेकिन हम जैसे दुनिया भर के पत्रकारों को बुलाया था सो हमारी हाज़िरी हो गई जनरल साहब की नहीं।

अगले दिन हमारी ख़बर ‘नवभारत’ के ग्यारह संस्करणों में पहले पेज पर छपी…खूब सराही गई।

🔹चलते चलते…

अब पूरा दिन खाली था..हमारे ड्राइवर साहब ने कहा कि पुष्कर पास ही में है चलिए घुमा लाते हैं। पुरखों का तर्पण भी कर आइए।

हमने फिर लगेज उठाया और चल दिए। पुष्कर पहुंचे और बिना किसी पंडे ,पुजारी के पुरखों को याद किया। सरोवर के किनारे बैठ कर थोड़ा सुस्ताए और फिर चल दिए।

किस्सा कोताह यह कि जनरल मुशर्रफ़ के बहाने हम ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की चौखट पर हाजिरी लगा आए और पुष्कर धाम भी।

नोट: दरगाह के साथ चस्पां हमारी तस्वीर फाइल फोटो है।

तब की नहीं है क्योंकि तब कैमरे वाले मोबाइल नहीं आए थे और हमारे साथ कोई कैमरामैन नहीं था।😊

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