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सरदार  भगत सिंह की पहली जीवनी  छपते ही अंग्रेजों ने जब्त कर ली थी।

▪️सरदार  भगत सिंह की पहली जीवनी
छपते ही अंग्रेजों ने जब्त कर ली थी।

🔹 डॉ.राकेश पाठक

शहीदे आज़म भगत सिंह के बारे में लिखी गई पहली किताब या उनकी पहली जीवनी के बारे में बात करते हैं।

यह किताब भगत सिंह और साथियों की फांसी के तत्काल बाद लिखी गई थी। ‘सरदार भगत सिंह: संक्षिप्त जीवन चरित’ नाम की इस किताब के लेखक थे भगत सिंह के क्रांतिकारी साथी जितेंद्रनाथ सान्याल। जितेंद्रनाथ सान्याल, शचींद्रनाथ सान्याल के छोटे भाई थे।

21 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे गई थी। उसके कुछ समय बाद जितेंद्रनाथ सान्याल ने किताब लिखी थी। किताब मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई थी।
यह किताब इलाहबाद के ‘चांद प्रेस’ के नाम से मशहूर ‘फाइन आर्ट प्रिंटिंग कोटेज’ से छपी थी जिसके संचालक रामरिख सहगल थी। सहगल प्रखर राष्ट्रवादी और क्रांतिकारियों के प्रबल समर्थक थे। वे चांद और भविष्य नाम से पत्रिकाएं निकालते थे।
( ‘चांद फांसी अंक’ बहुत चर्चित रहा था जिसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया था। इस अंक को तैयार करने वालों में भगत सिंह भी थे।)

० अंग्रेजों ने छपते ही जब्त कर ली किताब

जितेंद्रनाथ की भगत सिंह के जीवन पर लिखी किताब की जानकारी जैसे ही अंग्रेज सरकार को मिली उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। देशभर में इसे जब्त करने के लिए छापामारी शुरू हो गई। जितेंद्रनाथ के छोटे भाई भूपेंद्रनाथ को किताब की तीन सौ प्रतियों लेकर जाते हुए मथुरा स्टेशन पर पकड़ लिया और किताबें जब्त कर लीं।

चांद और भविष्य जैसी पत्रिकाओं के कारण चांद प्रेस और रामरिख सहगल पर अंग्रेजों की पहले ही बुरी नज़र थी। सहगल के ही शब्दों में “मेरी कोठी के चारों ओर खुफिया पुलिस के भूत मंडराया करते। बाद में तो उन्होंने कोठी के सामने अपने खीमे तक गाड़ लिए थे। करीब चालीस बार मेरे यहां पुलिस ने तलाशी ली।”

भगत सिंह की जीवनी की तलाश में भी अंग्रेज पुलिस ने चांद के ऑफिस में तलाशी ली। 12 जून 1931 को अल सुबह पुलिस ने धावा बोल दिया। तलाशी में किसी तरह उसके हाथ किताब की एक प्रति लग गई।

अग्रेज पुलिस अगले दिन 13 जून को फिर आ धमकी। इस बार वो पत्रिका के संपादक, मुद्रक,प्रकाशक की गिरफ्तारी का वारंट लेकर आई थी। संपादक के रूप में त्रिवेणी प्रसाद बी. ए. का नाम छपता था।

पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जब त्रिवेणी प्रसाद को पुलिस लेकर जा रही थी तब प्रेस के कर्मचारियों ने उन पर फूल बरसाए। इलाहाबाद का सिविल लाइन इलाका इंकलाब जिंदाबाद और भगत सिंह जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा।
उधर किताब के लेखक जितेंद्रनाथ सान्याल पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे। जितेंद्रनाथ और त्रिवेणी प्रसाद पर दफा 124 ए के तहत देशद्रोह का मुकदमा चला। अदालत में अभियोग लगा कि भगत सिंह के बारे में किताब लिखने वाले और छापने वाले ने देश में बगावत को उकसाने का काम किया है। सान्याल को दो साल और त्रिवेणी प्रसाद को छह महीने की सजा हुई।

० आज़ादी के बाद फिर छपी भगत सिंह की जीवनी

इस किताब में अंग्रेज सरकार ने हर जगह से जब्त कर लिया था। चांद प्रेस पर पुलिस ने दर्जनों पर छापा मारा, तलाशी ली लेकिन संचालक रामरिख सहगल किसी तरह इसकी एक प्रति बचा लेने में सफल रहे। बाद में अंग्रेजी में लिखी सान्याल की इस किताब का अनुवाद सहगल की पुत्री स्नेहलता ने किया। बचपन में उसे भगत सिंह का स्नेह और सानिध्य भी मिला था।

अगस्त 1947 में कर्मयोगी प्रेस, इलाहाबाद से इस किताब का पहला संस्करण प्रकाशित हुआ। इसमें जितेंद्रनाथ सान्याल की भगत सिंह की जीवनी के अलावा किताब की जब्ती, मुकदमे के विवरण के अलावा परिशिष्ट के रूप में अन्य अनेक जानकारियों भी शामिल की गईं।

{चांद फांसी अंक के बारे में फिर कभी लिखेंगे।}

सरदार भगत सिंह जिंदाबाद।

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