क्या वीरांगना लक्ष्मीबाई ने 17 जून को वीरगति प्राप्त की?
क्या वीरांगना लक्ष्मीबाई ने 17 जून को वीरगति प्राप्त की?
डॉ राकेश पाठक
सन 1857 की क्रांति में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का शहादत दिवस 18 जून माना जाता है। लेकिन कुछ प्रमाण यह साबित करते हैं कि लक्ष्मीबाई ने एक दिन पहले यानी 17 जून, 1858 को वीरगति प्रात की थी।
भारत की आजादी के प्रथम संग्राम में महारानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में अंग्रेजों के साथ संघर्ष में शहीद हुई थीं। 1 जून, 1858 को क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों और जयाजीराव सिंधिया को खदेड़कर ग्वालियर पर अधिकार कर लिया था।
बाद में अंग्रेज सेनानायक सर ह्यूरोज की कमान में अंग्रेज सेना ने प्रत्याक्रमण किया। इस संघर्ष में राव साहब पेशवा, तात्या टोपे और लक्ष्मीबाई आदि का मुकाबले उस युग के योग्यतम सेनानायकों सर ह्यूरोज़, रॉबर्ट हेमिल्टन, ब्रिगेडियर स्मिथ, रॉबर्ट नेपियर, स्टुअर्ट, मेजर आर, कर्नल रिडेल, कर्नल रेंस जैसों से हुआ।
भीषण संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई ने अदम्य वीरता के साथ लड़ते हुए वीरगति पाई। रानी की शहादत की तारीख 18 जून, 1858 मानी गई है लेकिन कुछ प्रमाण यह कहते हैं कि लक्ष्मीबाई 17 जून को ही शहीद हो गईं थीं।
1)भोपाल की बेगम का एजेंट भवानी प्रसाद उस समय ग्वालियर में हेमिल्टन के साथ था। वह 18 जून, 1858 के पत्र में बेगम को लिखता है कि कल रानी और नवाब दोनों ह्युरोज की छावनी पर गोलीबारी कर रहे थे तभी एक गोले से बांदा के नवाब का हाथ उड़ गया और दूसरा गोला रानी के वक्ष को छीलता निकल गया जिसके फलस्वरूप वह मर गई।
2)इंदौर के महाराजा होलकर का एजेंट रामचंद्र विनायक भी रानी की मृत्यु के विषय में लिखता है कि झांसी वाली बाई 17 जून को युद्ध में मारी गई। वह ऐसे हुआ कि रानी युद्ध के समय युद्ध स्थल पर थी वहीं उसे तलवार का वार लगा जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
3)सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य है मेजर सैमुअल चार्टर्स मैकफर्सन की डायरी। मेजर मैकफर्सन क्रांतिकाल में जयाजीराव सिंधिया के दरबार में ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से पॉलिटिकल एजेंट के पद पर तैनात था। उसने 1 जून से 19 जून तक की घटनाओं को अपनी डायरी में लिखा है।
मैकफर्सन 17 जून को लिखता है –
प्रातः 8 बजे दोनों पक्षों की सेनाएं नहर पर संघर्षरत हुईं। दोपहर में अंग्रेजी सेनाएं विद्रोहियों पर टूट पड़ी। कंपू के प्रांगण में रानी और उसकी सहेली मुंदर ( सुंदर ) लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। गंगादास के बाग में उनकी अंत्येष्टि की गई।
मेजर मैकफर्सन की डायरी मूलतः राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली में सुरक्षित है। इसका अनुवाद रघुवीर सहाय एमए भोपाल ने किया है।
उपरोक्त तथ्यों के बावजूद रानी की शहादत की तारीख 18 जून को ही मान्यता मिली हुई है।
महारानी लक्ष्मीबाई के शहीद होने के बाद उसके सबसे बड़े शत्रु सर ह्यूरोज ने सराहा और लिखा –
She was the bravest and best military leader of the rebels.
इतिहास लेखक विंसेंट स्मिथ भी यह लिखने को विवश हुआ कि लक्ष्मीबाई स्वाधीनता संग्राम में सबसे अधिक योग्य नेता थीं।
इतिहासकार अयोध्या सिंह के शब्दों में –
इस तरह भारतीय इतिहास की इस वीरांगना के जीवन का अंत 17 जून, 1858 को सिर्फ 23 वर्ष की आयु में हुआ। यूरोप वासियों को अपनी जोन ऑफ़ आर्क पर बड़ा अभिमान है, भारत की यह वीरांगना ‘जोन ऑफ आर्क’ से कहीं बढ़ कर थी। उनका बलिदान युगों तक भारतवासियों के हृदय में स्वतंत्रता की भावना प्रज्जवलित रखेगा।
* लक्ष्मीबाई की यह तस्वीर डॉ भगवान दास गुप्त की क़िताब झांसी राज्य का इतिहास और संस्कृति से ली गई है।
यह तस्वीर मूलतः लंदन के संग्रहालय में है।